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पुस्तक

Sacch Bhayam Book Cover

सच्चं भयवं

आचार्यश्री रूपचंद्र जी महाराज भारतीय धर्म-दर्शन के विविध आयामों के विद्वतवरेण्य प्रवक्ता हैं। आपका व्यक्तित्व सदानीरा की भांति रसगर्भ है। आपमें एक कवि की संवेदना, संत की करुणा, मनीषी की पारमिता दृष्टि, लोकनायक की उत्प्रेरणा, समन्वय तथा शांति के मसीहा की निर्मल भावना विविध रूपों में मुखरित है। आपकी जीवनधारा में साधना, स्वाध्याय, पदयात्राएं, मनीषियों से सम्पर्क, लोक जीवन में शाश्वत मानवीय मूल्यों के उन्नयन की प्रेरणा, इन सबका समवेत प्रसार तथा विकास होता रहा है। आचार्यश्री रूपचंद्र जी का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को विक्रमी संवत 1996, तदनुसार 22 सितंबर 1939 को राजस्थान के सरदारशहर के प्रसिद्ध मारवाड़ी सेठ परिवार में हुआ था। मात्र 13 वर्ष की अवस्था में मुनि के रूप में दीक्षित होने के बाद आचार्यश्री ने संपूर्ण भारत और नेपाल की पदयात्रा की। करीब 50 हजार किमी की पदयात्रा के दौरान आपका समकालीन दार्शनिकों, संतों व दिव्य विभूतियों से विचार विनिमय होता रहा। संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, राजस्थानी अनेक भाषाओं में प्रवीण आचार्यश्री ने विभिन्न स्रोतों व आचार्यों से दर्शन, मनोविज्ञान, विज्ञान, समाजशास्त्र व विभिन्न धर्म स्रोत साहित्य का अध्ययन किया व उन्हें अपने अनुभव से सिद्धकर परमोपदेश का माध्यम बनाया। गत 35 वर्षों से आपकी विदेश यात्रायों द्वारा साधना का प्रकाश पश्चिमी देशों को भी प्राप्त हो रहा है।

Manav Mandir Mission Annual Day Book Launch

आचार्यश्री रूपचंद्र जी महाराज भारतीय धर्म-दर्शन के विविध आयामों के विद्वतवरेण्य प्रवक्ता हैं। आपका व्यक्तित्व सदानीरा की भांति रसगर्भ है। आपमें एक कवि की संवेदना, संत की करुणा, मनीषी की पारमिता दृष्टि, लोकनायक की उत्प्रेरणा, समन्वय तथा शांति के मसीहा की निर्मल भावना विविध रूपों में मुखरित है। आपकी जीवनधारा में साधना, स्वाध्याय, पदयात्राएं, मनीषियों से सम्पर्क, लोक जीवन में शाश्वत मानवीय मूल्यों के उन्नयन की प्रेरणा, इन सबका समवेत प्रसार तथा विकास होता रहा है।

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Kewal Tum Nahi Ho Book Mockup New

केवल तुम नहीं हो

आचार्य मुनि रूपचन्द्र भारतीय धर्म-दर्शन के विलक्षण प्राख्याता हैं। सृजेता के रूप में कविता से उनका नैसर्गिक जुड़ाव है। उनके लोकप्रिय संचयनों में ‘अंधा चाँद’, ‘अर्ध-विराम’, ‘भूमा’, ‘तलाश एक सूरज की’, ‘खुले आकाश में’ एवं ‘किस संबोधन से पुकारू’ के अतिरिक्त ‘सुना है मैंने आयुष्मन्’, ‘मैं कहता आंखन देखी’, ‘वो क्या जाने पीर पराई’, ‘अहिंसा है जीवन का सौन्दर्य’ चिन्तनपरक लेखन अन्यान्य प्रकाशित रचनाएं हैं।

अहिंसा विषयक पुस्तक पर सुप्रसिद्ध साहित्यकार अमृता प्रीतम लिखती हैं अहिंसा में उनकी आस्था ने गहरी जिज्ञासा, संकल्प, संवेदना, तर्क, चिंतन, चेतना और कठिन साधना का अग्नि-स्नान किया है।

आपने ‘सर्वजन हिताय, सर्व-जन सुखाय’ भारत तथा नेपाल की पचास हजार किलोमीटर की पदयात्राएं की। पिछले पचीस वर्षों से भारतीय संस्कृति के शाश्वत मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए नार्थ अमेरिका तथा यूरोप के देशों में प्रवचन-माला, कार्यशाला तथा योग-ध्यान शिविर आदि द्वारा निरंतर यात्रारत हैं।

आपकी अनेक पुस्तकों का अनुवाद अंग्रेजी, बांग्ला, कन्नड़, पंजाबी, गुजराती, नेपाली आदि भाषाओं में हुआ है। स्वदेश में बेसहारा वर्ग के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य की इकाईयां गठित कर शिक्षा, योग तथा लोकोत्तर ज्ञान की प्रयोगशालाओं में सक्रिय है।

Manav Mandir Mission Temple 2

पूज्य आचार्यवर की काव्य-कृति – केवल तुम नहीं हो- का लोकार्पण करते हुए डॉ. महेन्द्रसिंह जी डागा। साथ में हैं- (दायें से) श्री सुभाष तिवारी, डॉ. गंगाप्रसाद विमल, डॉ. रिखबचन्द्र जैन, श्री आर. के. जैन, श्री अरूण योगी, सरदार लखविन्दर सिंह, डॉ. गौरीशंकर रैना, प्रो. फूलचन्द मानव आदि ।

Hans Hakela Book Cover

हंस अकेला

डॉ. विनीता जी ने जब मेरी जीवन-यात्रा पर अपनी कलम के लिए अनुमति चाही, मैंने अपने को अजीब-सी दुविधापूर्ण मनःस्थिति में पाया। मेरी यात्रा अभी जारी है। वह भी अनन्त की यात्रा । अभी जितना चला हूँ, क्षितिज पर क्षितिज खुलते जा रहे हैं। इतना अवश्य जान पाया हूँ, कोई भी क्षितिज कहीं मिलने वाला नहीं है। यह अन्तहीन सिलसिला है। अब रही अब तक की यात्रा की उपलब्धि-कथा, तो यही कह सकता हूँ मैं किसी पिंजरे में बँधा नहीं। इसलिए असीम आकाश का सुख ही मेरी उपलब्धि है। यात्रा के बीच पिंजरे खूब मिले। एक-से-एक लुभावने पिंजरे । सोने-चाँदी के पिंजरे । रत्न-जड़ित कटोरों में स्वादिष्ट मिष्ठान मेवे । पिंजरे का आमंत्रण स्वीकार करने पर सर्वोच्च पद, यश-प्रतिष्ठा और जय-जय के नारे। सब कुछ था सामने। लेकिन इसके लिए पिंजरे का जीवन स्वीकारना जरूरी था। असीम आकाश के सुख से मुँह मोड़ना जरूरी था। तभी भीतर से कोई चीख उठता-

रास आ गया जिस तोते को सोने के पिंजरे का जीवन, उन पाँखों के लिए कहीं कोई आकाश नहीं होता है।

Hans Hakela Book Launch At Rashtrapati Bhawan

‘हंस अकेला’ पुस्तक के साथ राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल, आचार्यश्री रूपचन्द्र, श्री पवनकुमार बंसल तथा लेखिका डॉ. विनीता गुप्ता ।