मुक्तक
अपमानों से डरे आज तक सम्मानों से डरना होगा,
अपमानों से डरे आज तक सम्मानों से डरना होगा,अभिशापों से डरे आज तक वरदानों से डरना होगा,देख धर्म-गुरुओं के धंधे…हर किश्ती के साथ सौ-सौ अरमान होते हैं
हर किश्ती के साथ सौ-सौ अरमान होते हैं,हर अरमान के साथ सौ-सौ तूफान होते हैं,जो कुचलकर बढ़ जाए तूफानों की…आदमी अब जानवर की सरल परिभाषा बना है
आदमी अब जानवर की सरल परिभाषा बना है,भस्म करने विश्व को वह आज दुर्वासा बना है,क्या ज़रूरत है राक्षसों के…आदमी की शक्ल से अब डर रहा है आदमी,
आदमी की शक्ल से अब डर रहा है आदमी,आदमी को लूटकर घर भर रहा है आदमी,आदमी ही मारता है मर…