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सब पाने की लालसा कुछ भी खोने के दुख को बड़ा बनाती है।

क्या आपने सोचा है कि जैसा हम सोचते हैं, अगर बिलकुल वैसा ही होने लगे तो इस दुनिया की तस्वीर कैसी बनेगी? तब जीवन में रोमांच कितना रह जाएगा? संसार को जानने की उत्कंठा और उसे पाने की प्यास कितनी बची रह जाएगी? हालांकि यह संभव भी नहीं है और न ही ऐसा होना चाहिए। यह प्रकृति की संरचना के खिलाफ होगा और इससे श्रम का महत्व कम हो जाएगा। जिंदगी अगर सब कुछ पाने का ही नाम बन जाए, तो तय मानिए कि कुछ भी खोने का दुख बहुत बड़ा बन जाएगा। आदमी का जब क्रोध और अहंकार खोता है तो वह उदास हो जाता है। उसे ऐसा लगता है कि कुछ अपना छूट रहा है।

दरअसल हम निश्चित नहीं कर पाते हैं कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है। यह दुविधा हमारे साथ चलती है और यही हमारी असफलता की वजह बन जाती है। लेकिन खुद को इस आरोप से बचाने की कोशिश में हम लगातार गलतियां करते चले जाते हैं। हमारा एक स्वभाव बन गया है कि जब कुछ मिल जाता हैं तो उसका सारा श्रेय स्वयं को देते हैं और जब नाकामयाबी मिलती है तो उसका सारा ठीकरा भाग्य पर फोड़ देते हैं। ऐसी मानसिकता ‘डर’ से पैदा होती है। यह डर हर आदमी के अंदर बैठा हुआ है। यह न केवल आगे बढ़ने से रोक रहा है, बल्कि संघर्ष से पलायन करने के लिए भी बाध्य कर रहा है।

अगर सफलता चाहिए तो सबसे पहले मुश्किलों से दोस्ती और डर का सामना करना सीख लीजिए। जीवन का एक फार्मूला है कि जो आपको डराए, उसके सामने खड़े हो जाइए। गांव-घर में पेड़ों के नीचे भूत होने की कहानियां बार-बार दोहराई जाती हैं, लेकिन किसी की मुलाकात भूत से हुई हो, इसका सबूत देने कोई भी सामने नहीं आता। होशियार लोगों ने अपने उस डर को भगाने का सबसे अच्छा उपाय यह किया कि वे उन पेड़ों के नीचे चले जाते हैं। उन्हें कभी कोई भूत-प्रेत नजर नहीं आता। मतलब, उन्होंने अपने डर से मुकाबला करने का तरीका निकाला।

लेकिन अजीब बात यह है कि ज्यादातर लोग अपने डर को भगाने के लिए मंदिर, दरगाह, बाबाओं की शरण में चले जाते हैं। यह कुछ उस मजाकिया मुहावरे का दोहराव है कि ‘शांति होती है घर-परिवार में, ढूँढ़ने जाते हैं हरिद्वार में’। अनुभव बताते हैं कि मुश्किलें न हों तो आगे का रास्ता खोजना भी मुश्किल हो जाए। मुश्किले गिराती हैं तो उठाती भी हैं। तब यह महत्वपूर्ण नहीं होता कि कोई कितनी बार गिरता है, बल्कि महत्व इस बात का होता है कि वह कितनी बार ऊपर उठ सकता है। शुलर ने एक सुझाव दिया है कि अगर आपके पास बहुत से डर हैं तो आपको सिर्फ एक डर का इलाज करना है, वह है असफलता का डर।

-आचार्य रूपचन्द्र

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