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अमेरिका से पधारे आदरणीय श्री केशव प्रसाद शुक्ल का सम्मान एवं स्वागत समारोह – एक गरिमामय क्षण।

भारत की पुण्य भूमि पर एक ऐतिहासिक अवसर साक्षी बना जब अमेरिका से पधारे आदरणीय श्री केशव शुक्ला जी का मानव मंदिर मिशन द्वारा भव्य अभिनंदन एवं सम्मान समारोह आयोजित किया गया। यह आयोजन पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री रूपचंद्र जी महाराज के पावन सान्निध्य में संपन्न हुआ, जिसमें विप्र समाज एवं विद्वतजनों की गरिमामयी उपस्थिति रही। इस कार्यक्रम के सूत्रधार आदरणीय सुभाष चंद्र तिवारी रहे। इस अवसर पर मंच पर और मंच के समक्ष बैठे समस्त विचारक, शिक्षाविद्, समाजसेवी और अध्यात्मिक साधक — सभी ने अपने-अपने भावों से कार्यक्रम को सारगर्भित किया। आदरणीय श्री केशव शुक्ला जी ने गद्गद भाव से अपने विचार रखते हुए कहा:
“मैं हृदय से अभिभूत हूं कि भारत में, विशेषतः इस पावन संस्थान में, मेरा इस प्रकार से स्वागत हुआ। अमेरिका में विप्रजनों ने ज्ञान और नैतिकता की मशाल को थामे रखा है — अब समय है कि भारतवर्ष में भी ब्राह्मण बुद्धिजीवी वर्ग इसी धारा को गति दे और पुनः वैश्विक परिवर्तन का नेतृत्व करे, जो केवल भारत ही नहीं, विश्व के रूपांतरण की दिशा में मील का पत्थर बन सकते हैं। विश्व बंधुत्व की भावना ब्राह्मण चिंतन की आत्मा है। यह विचार न केवल भारतीय समाज को जोड़ता है, बल्कि वैश्विक शांति का सूत्र भी प्रदान करता है। इस अवसर पर पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री रूपचन्द्रजी महाराज, श्री सुभाष चंद्र तिवारी जी, साध्वी कनकलता जी महाराज, साध्वी समताश्री जी महाराज, डॉक्टर अरुण प्रकाश जी, श्री उत्तम प्रकाश तिवारी जी, श्री मुकेश शर्मा जी, श्री टी. एन, तिवारी जी, श्री राजीव तिवारी जी, श्री रवि तिवारी जी, श्री अरुण योगीजी महाराज, श्री पी.के. शास्त्री जी, श्री अनुराग मिश्रजी, श्री देवेश मिश्रजी, श्री दिनेश वत्सजी, श्री देवेंद्र मणि त्रिपाठी, श्री शैलेंद्र कुमार झा जी, गुरुकुल की छात्रा सुश्री दिव्या आदि ने अपने भाव प्रकट किये।” दर्शनशास्त्र के ज्ञाता डॉ. अरुण प्रकाश जी ने सनातन धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म में ब्राह्मणों के योगदान पर प्रकाश डाला।
सनातन धर्म में ब्राह्मण — ब्राह्मण वेदों के ज्ञाता, यज्ञों के कर्ता, गुरुकुलों के संचालक, और नीति-धर्म-आचरण के संरक्षक रहे। बौद्ध धर्म में ब्राह्मण— स्वयं बुद्ध का प्रारंभिक शिक्षण ब्राह्मण गुरुओं से हुआ। जैन धर्म में ब्राह्मण — अनेक जैन आचार्य जैसे हरिभद्रसूरी, उमास्वाति, जिनसेन आदि ब्राह्मण कुल से आए, जिन्होंने जैन आगमों की रचना व व्याख्या की।
ब्राह्मण वह है जो ‘ब्रह्म’ की ओर ले जाए —
ज्ञान का दीपक, शील का प्रहरी और संस्कृति का मूलाधार।
वह न केवल धर्म रचता है,
बल्कि उसे जीकर संसार को दिशा देता है।
कार्यक्रम का समापन पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री जी के मंगलपाठ से हुआ।

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